कारगिल विजय दिवस पर भावुक हुईं सेलिना जेटली, बताया परिवार ने किस तरह झेला दर्द

आज पूरे देश में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। इस मौके पर बॉलीवुड अभिनेत्री सेलिना जेटली ने अपने पिता को याद किया है। उनके पिता (दिवंगत) कर्नल विक्रम कुमार जेटली युद्ध के दौरान एक सक्रिय सेवारत अधिकारी थे। उस वक्त अभिनेत्री छोटी थीं। एक वीडियो में उन्होंने अपने पिता के संघर्ष को बताया है।

सेलिना ने सैनिकों के परिवार का दर्द बयान किया
सेलिनाजेटली  ने फेसबुक पर एक वीडियो शेयर किया है। इसमें उन्होंने बताया है ‘मैं उस समय किशोरी थी और एक बेटी होने के नाते, मैं उनकी विरासत को संभाल कर रखती हूं। मेरे पिता ने हर दिन और एक पैदल सैनिक के रूप में अपने पूरे जीवन में भार उठाया है।’

हाल ही में शेयर किए गए वीडियो में सेलिना सैनिकों के परिवार का दर्द बयान किया है। उन्होंने कहा ‘मुझे याद है अपने बेटों के अंतिम संस्कार में माता-पिता की खाली निगाहें, और हाल ही में अपने पतियों को खो चुकीं युवा पत्नियों/बच्चों की सिसकियां। यह सिर्फ खबर नहीं थी, यह एक ऐसा दर्द था जो हवा में गहराई तक समाया हुआ था। जिसे हमने दर्द के साथ करीब से देखा। सेना के हर घर ने इसे महसूस किया।’

सेलिना को जंग के दौरान दुख हुआ था
सेलिना जेटली ने कारगिल के युद्ध की भयावह यादों को दोबारा याद करते हुए बताया ’26 साल बाद आज भी ये यादें ताजा हैं। उस वक्त हमने अपनी सांसें थामी हुई थीं। खबर का इंतजार कर रहे थे। हर अनजान नंबर से आने वाली कॉल से डर रहे थे। आप जिंदगी को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं, लेकिन भावनात्मक रूप से, आप उनके साथ तैनात होते हैं। वर्दी सिर्फ सेवा करने वाले ही नहीं पहनते हैं, इसे पूरा परिवार महसूस करता है। महिलाएं, बच्चे, बुज़ुर्ग, हम सभी मूक योद्धा बन जाते हैं। कारगिल में हर वार व्यक्तिगत लगता था और हर शहीद अपना सा लगता था।’

सेलिना के भाई ने सेना में काम किया
कारगिल युद्ध ने सेलिना के भाई पर गहरा असर डाला। उन्होंने बताया ‘कारगिल के दौरान मेरा छोटा भाई अभी भी स्कूल में था, लेकिन जंग ने उस पर गहरा प्रभाव डाला। इसने उसके जीवन की दिशा तय की और वह भारतीय सेना में शामिल हो गया। उसने पैरा एसएफ अधिकारी के रूप में सेवा की।’

सेलिना के दादा और परदादा भी सेना में थे
अपनी विरासत के बारे में बात करते हुए, सेलिना ने बताया ‘मेरे दादा, राजपूताना राइफल्स के कर्नल ई. फ्रांसिस, भी एक पैदल सैनिक थे, 1962 के युद्ध के दौरान घायल हो गए थे। उनके साहस और बलिदान की कहानियां हमारे परिवार के डीएनए का हिस्सा बन गईं। मेरे परदादा आर्मी एजुकेशन कोर में सेवारत थे और प्रथम विश्व युद्ध के अनुभवी थे। इसलिए हमारे लिए, कारगिल राष्ट्रीय इतिहास का सिर्फ एक अध्याय नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा क्षण है जो सेवा और बलिदान की पीढ़ियों में गूंजता रहा।’

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