पाकिस्तान से पहले विपक्ष से टकराव, संकट में सुरक्षा पर मतभेद!

देश की राजनीति संकट के समय हमेशा एकजुट रही है। लेकिन पहलगाम हमले के मामले में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अविश्वास का एक संकट खड़ा होता दिखाई दे रहा है। कई राजनीतिक दलों ने सरकार की खामियों पर सवाल खड़े किए हैं। इसे देखते हुए भाजपा ने कांग्रेस सहित विपक्ष के कई दलों पर यह आरोप लगाया है कि जब संकट के समय पूरे देश को एकजुट होने की आवश्यकता है, विपक्ष ‘आपदा में अवसर’ की तलाश कर रहा है। हालांकि, कांग्रेस ने सरकार के साथ खड़े रहने की बात कही है और आपत्तिजनक बयानबाजियों को उन नेताओं की व्यक्तिगत राय कहकर खारिज कर दिया है।

पहलगाम में 22 अप्रैल को पर्यटकों पर हमला हुआ। इसके बाद कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने इसकी कड़ी भर्त्सना की। सभी दलों ने इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने पर सरकार के साथ खड़े रहने की बात कही। स्वयं राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी पूरी तरह सरकार के साथ खड़ी है, लेकिन कुछ ही समय बाद विपक्ष के कुछ नेताओं ने पर्यटकों की सुरक्षा में बरती गई लापरवाही का मामला उठाते हुए इसके लिए केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया। कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने पाकिस्तान के साथ युद्ध की बजाय बातचीत करने की बात कही। रॉबर्ट वाड्रा ने आतंकी हमले के लिए मुसलमानों के द्वारा खुद को असुरक्षित समझे जाने का कारण बताया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आतंकी हमले में मारे गए एक व्यक्ति के परिवार के साथ उनका कोई संबंध न होने की बात कह दी। कुछ दलों ने इस हमले को बिहार चुनाव से जोड़ने का काम भी किया है। भाजपा का आरोप है कि पाकिस्तान ने इन नेताओं की बयानबाजी को अपने पक्ष में भुनाने के लिए इस्तेमाल किया।

ऐसी बयानबाजी का क्या होता है नुकसान
केंद्र सरकार ने अभी यह स्पष्ट नहीं किया है कि पहलगाम हमले के मुद्दे पर उसकी क्या रणनीति रहेगी, लेकिन जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तेवर दिखाए हैं, माना जा रहा है कि सरकार कोई ठोस कार्रवाई कर सकती है। इसमें सीमा पार आतंकी कैंपों पर कार्रवाई भी शामिल हो सकती है जैसा कि पुलवामा हमले के बाद किया गया था। ऐसे अवसरों पर भारत को अपनी कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नैतिक रूप से सही साबित करने का दबाव भी होता है।

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