ब्रिटेन की सरकार ने श्रीलंका के सैन्य कमांडर्स पर लगाया प्रतिबंध, मानवाधिकार उल्लंघन के हैं आरोपी

ब्रिटेन ने मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाते हुए श्रीलंकाई सेना के शीर्ष सैन्य कमांडरों सहित चार लोगों पर प्रतिबंध लगाया है। इन सैन्य कमांडर्स पर आरोप है कि साल 2009 में लिट्टे के खिलाफ सैन्य अभियान में इन लोगों ने मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया। ब्रिटेन के विदेश कार्यालय ने सोमवार को एक बयान जारी कर यह जानकारी दी। बयान के अनुसार, जिन सैन्य कमांडर्स पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें श्रीलंकाई सशस्त्र बलों के पूर्व प्रमुख शैवेंद्र सिल्वा, पूर्व नौसेना कमांडर वसंथा करन्नागोडा और श्रीलंकाई सेना के पूर्व कमांडर जगत जयसूर्या का नाम शामिल है।
लिट्टे के पूर्व नेता पर भी लगाया गया प्रतिबंध
इनके अलावा लिट्टे के पूर्व उप-नेता विनयमूर्ति मुरलीधरन पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। विनयमूर्ति ने लिट्टे से बगावत की थी और बाद में श्रीलंका सरकार में मंत्री बन गए थे। प्रतिबंध के तहत इन चारों लोगों पर ब्रिटेन की यात्रा करने पर प्रतिबंध रहेगा और इनकी ब्रिटेन में स्थित संपत्ति को भी जब्त कर लिया गया है। बयान में कहा गया है कि जिन लोगों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, उन्होंने श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया। ये लोग न्यायिक हिरासत में हत्या, यातना देने और यौन हिंसा की घटनाओं में शामिल रहे।
अमेरिका और कनाडा की सरकारें भी लगा चुकी हैं प्रतिबंध
ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी ने कहा कि प्रतिबंध लगाने का उद्देश्य जवाबदेही तय करना है। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन की सरकार श्रीलंका की नई सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर है। गौरतलब है कि साल 2020 में अमेरिका भी जनरल सिल्वा पर प्रतिबंध लगा चुका है। साल 2023 में कनाडा की सरकार ने श्रीलंका के दो पूर्व राष्ट्रपतियों महिंदा राजपक्षे और गोटाबाया राजपक्षे पर प्रतिबंध लगाए थे। राजपक्षे भाइयों पर ही लिट्टे के खिलाफ कार्रवाई का नेतृत्व करने का आरोप है।
श्रीलंका में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के नेतृत्व में तमिल लोग अलग देश की मांग कर रहे थे। इसे लेकर लिट्टे ने तीन दशक तक लड़ाई लड़ी, जिसमें 20 हजार से अधिक लोग लापता हुए और इस गृहयुद्ध के दौरान कम से कम एक लाख लोगों की जान गई। 18 मई 2009 को लिट्टे प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरन की मौत के साथ ही इस गृहयुद्ध का अंत हो गया।