‘सैनिकों से है पुरैनी की पहचान, डॉक्टर डेथ से न जोड़ें गांव का नाम…

अलीगढ़:  जिस गांव के लाल प्रवीण कुमार ने सरहद की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। सैनिकों के गांव के रूप में जिसकी पहचान है, वहीं पुरैनी आज ”डॉक्टर डेथ” की करतूतों के कारण देशभर में बदनाम हो रहा है। इससे यहां के ग्रामीण आहत हैं।

अलीगढ़ जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर अतरौली-छर्रा मार्ग पर कारगिल के बलिदानी प्रवीण के नाम से द्वार है। यहां से एक किलोमीटर दूर पुरैनी गांव में भी घुसते ही बलिदानी प्रवीण कुमार का स्मारक है, जिसे मंदिर का रूप दिया है। 26 जून 1999 को प्रवीण कुमार कारगिल युद्ध के दौरान बलिदान हो गए थे। यहां पूछने पर एक ग्रामीण देवेंद्र शर्मा के खंडहर हो चुके पुश्तैनी घर का पता तो बता देते हैं, लेकिन कहते हैं कि अखबार और टीवी से उसके बारे में देख-सुन रहे हैं। गांव को उसने बदनाम कर दिया, इसके बाद बिना अपना नाम बताए आगे बढ़ जाते हैं। इसके पीछे उनकी मंशा किसी तरह के विवाद से बचने की रही।

यह प्रतिक्रिया अपने आप बहुत कुछ कह रही है। करीब 2500 की आबादी वाले जाट बहुल गांव में ब्राह्मण, वैश्य, जाटव और खटीक समाज के लोग रहते हैं। इनमें 50 से अधिक सैनिक और पूर्व सैनिकों के परिवार हैं। पूर्व प्रधान उधम सिंह के पुत्र सोनू चौधरी बताते हैं कि प्रवीण उनका तहेरा भाई था। पुरैनी की पहचान सही मायनों में सैनिकों के गांव से हैं। देवेंद्र के तहेरे भाई रामवीर शर्मा कहते हैं कि वह गलत संगत में पड़ गया था। उसकी वजह से गांव की बदनामी हो रही है।

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