ED की शक्तियों को बरकरार रखने वाले 2022 के फैसले के खिलाफ याचिकाएं, तीन जजों की पीठ पुनर्गठित

नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के गिरफ्तारी और संपत्ति जब्त करने के अधिकारों को लेकर 2022 के फैसले पर दोबारा विचार करने के लिए तीन जजों की नई बेंच गठित की है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुईयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की यह बेंच अब सात मई को इस मामले की सुनवाई करेगी। इससे पहले न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति भुईयां और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार इस मामले की सुनवाई कर रहे थे, लेकिन न्यायमूर्ति रविकुमार 5 जनवरी को रिटायर हो गए।

सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में ईडी के अधिकारों को ठहाराया था सही
6 मार्च को यह मामला गलती से दो जजों की बेंच के सामने आ गया था। उस समय न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने वकीलों को भरोसा दिया था कि जल्द ही तीन जजों की नई बेंच इस पर सुनवाई करेगी। बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2022 में ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) मामलों में गिरफ्तारी, संपत्ति अटैच करने, तलाशी और जब्ती करने के अधिकारों को सही ठहराया था।

‘ईसीआईआर को एफआईआर के बराबर नहीं’
हालांकि, अगस्त 2022 में कोर्ट ने इस फैसले की समीक्षा के लिए दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करने पर सहमति जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि दो अहम मुद्दे — ईडी की शिकायत रिपोर्ट (ईसीआईआर) न देना और आरोपी को पहले से ही दोषी मान लेना — पर फिर से विचार करने की जरूरत है। कोर्ट ने तब कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग दुनियाभर में वित्तीय व्यवस्था के लिए खतरा है और इसे साधारण अपराध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा था कि ईडी अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं माने जाते और ईसीआईआर को एफआईआर के बराबर नहीं माना जा सकता।

200 याचिकाओं में PMLA के प्रावधानों को दी गई थी चुनौती
इस फैसले में कहा गया था कि हर मामले में आरोपी को ईसीआईआर की कॉपी देना जरूरी नहीं है। गिरफ्तारी के समय ईडी की तरफ से गिरफ्तारी के कारण बता देना ही पर्याप्त है। यह फैसला उन 200 से ज्यादा याचिकाओं पर आया था, जिनमें लोगों और संस्थाओं ने मनी लॉन्ड्रिंग कानून (पीएमएलए) के कई प्रावधानों को चुनौती दी थी। विपक्ष भी अक्सर इस कानून को सरकार द्वारा अपने विरोधियों को निशाना बनाने का हथियार बताता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस कानून के तहत गिरफ्तारी और जमानत की शर्तें सख्त हैं लेकिन यह उचित है और इसमें कोई मनमानी या अन्याय नहीं है। अब देखना होगा कि नई बेंच इस फैसले पर क्या राय देती है।

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