US-ओमान पहुंची स्टील की सड़क की भारतीय तकनीक, दो ट्रिलियन का बाजार, मिलेंगी एक करोड़ नौकरियां

नई दिल्ली:वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) की स्टील स्लैग तकनीक से बनाई जाने वाली सड़क का फार्मूला, अब अमेरिका के शिकागो व ओमान तक जा पहुंचा है। इन देशों में भारत के उक्त संस्थानों द्वारा बनाई गई तकनीक से स्टील स्लैग रोड बनाए जा रहे हैं। सीआरआरआई के मुख्य वैज्ञानिक सतीश पांडे ने बताया, स्टील स्लैग रोड तकनीक भारत के सड़क अवसंरचना क्षेत्र के लिए एक गेम चेंजर है। इससे भारत की सर्कुलर इकॉनॉमी की दिशा को गति मिलेगी। सतीश पांडे के मुताबिक, इसके माध्यम से वर्ष 2050 तक $2 ट्रिलियन से अधिक का बाजार खड़ा होने की संभावना है। ऐसे में लगभग एक करोड़ नौकरियां उत्पन्न हो सकती हैं।

मुख्य वैज्ञानिक सतीश पांडे ने शुक्रवार को एक प्रेसवार्ता में बताया कि किसी भी सड़क के निर्माण में मुख्य सामग्री नेचुरल एग्रीगेट होता है। मौजूदा समय में प्रतिवर्ष 1.2 बिलियन एग्रीगेट की खपत हो रही है। आने वाले समय में इस एग्रीगेट की खपत बहुत तेजी से बढ़ेगी। इससे पर्यावरण को भी नुकसान होता है, क्योंकि इसके लिए कहीं तो माइनिंग करनी ही पड़ेगी। स्टील स्लैग रोड तकनीक से पर्यावरण को बचाया जा सकता है। किसी भी सड़क के निर्माण में 95 प्रतिशत मात्रा, एग्रीगेट यानी रोड़ी बजरी की होती है। ऊपर की परत, जिसका हिस्सा केवल पांच फीसदी रहता है, उसमें सीमेंट/बिटुमिनस रहता है। वैज्ञानिक रूप से प्रोसेस की गई स्टील स्लैग रोड, पारंपरिक निर्माण सामग्री की तुलना में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है।

स्टील स्लैग रोड सामान्यत: 30 से 40 प्रतिशत अधिक लागत प्रभावी होती है। इसके अलावा पारंपरिक बिटुमिनस रोड की तुलना में तीन गुणा अधिक मजबूत होती है। पारंपरिक बिटुमिनस रोड, बहुत जल्द टूट जाती है। चार पांच वर्ष में तो इसकी लेयर बदलनी ही पड़ती है। अगर पानी ज्यादा समय तक खड़ा रहे तो सड़क टूट जाती है। दूसरी ओर, स्टील स्लैग रोड, पारंपरिक बिटुमिनस रोड से तीन गुणा अधिक चलती है। कम से कम 12 वर्ष तक स्टील स्लैग रोड को मरम्मत की जरुरत ही नहीं होती।

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