‘वामपंथी सोच भारतीय संस्कृति के समक्ष बड़ा खतरा’, सुधांशु त्रिवेदी का बड़ा बयान

नई दिल्ली: भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने वामपंथी विचारधारा को देश की संस्कृति के लिए ‘खतरनाक’ बताया है। उन्होंने कहा है कि वामपंथी विचारधारा जहां भी पनपी, वहां इसने स्थापित मान्यताओं को अपने लाभ के लिए तोड़ने-मरोड़ने का काम किया। अपने शुरुआती दौर से ही जिस भी देश में वामपंथी विचारधारा पनपी, वहां हिंसक रास्तों से इसने सत्ता तक अपनी पैठ बनाई, लेकिन इसके बाद भी वामपंथी लोग अपने साथ लिबरल (उदारवादी) शब्द का उपयोग करते हैं जो इस शब्द का दुरुपयोग है।
त्रिवेदी ने कहा कि समय के साथ वामपंथी विचारधारा अपना स्वरुप बदल रही है। इस समय वह ‘वोकिज्म’ का रूप धरकर भारतीय संस्कृति की नींव और इसकी सबसे बहुमूल्य इकाई ‘परिवार’ को तबाह करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि इससे हर उस व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए जो राष्ट्रवादी है और देश की संस्कृति-सभ्यता को प्रेम करता है।
राष्ट्रवादी विचारधारा के लेखक अभिजीत जोग की पुस्तक ‘टरमाइट्स’ के हिंदी संस्करण ‘वामपंथी दीमक’ के लोकार्पण के अवसर पर रविवार को लोगों को संबोधित करते हुए डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि यह विचारधारा अक्सर उदारवाद, सेक्युलर, बोलने की स्वतंत्रता और प्रगतिवाद की अगुवा के रूप में प्रस्तुत की जाती है, लेकिन असलियत यह है कि वामपंथी विचारधारा जिस भी देश में पनपी, वहां उसने लोगों को बोलने की आजादी नहीं दी।
इसके लिए उन्होंने साम्यवादी देश चीन, उत्तर कोरिया और म्यांमार का उदाहरण दिया। त्रिवेदी ने कहा कि इन देशों में किसी विपक्षी को बोलने की आजादी नहीं है, कोई सरकार-सत्ता के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता, लेकिन इसके बाद भी साम्यवादी शासन व्यवस्था स्वयं को बोलने की आजादी की पक्षधर बताए तो यह हास्यास्पद है।