सीआरआर में कटौती के फैसले से जानकार भी चौंके, नीतिगत रुख को उदार से तटस्थ करने के क्या मायने?

भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बार एमपीसी की बैठक में काफी साहसिक कदम उठाए है। बाजार के विश्लेषकों के अनुसार, रेपो रेट में 50 आधार अंकों की कटौती की गई है, जबकि बाजार को महज 25 आधार अंकों की कटौती की उम्मीद थी। दूसरी ओर, नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी 100 आधार अंकों की कटौती करके इसे 3 प्रतिशत करने का चौंकाने वाला फैसला लिया गया है। इससे बैंकिंग प्रणाली में करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की लिक्विडिटी बढ़ने की उम्मीद है। जानकारों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से भविष्य में दरों में कटौती का फैसला आने वाले समय में अर्थव्यवस्था के अहम आंकड़ों पर निर्भर करेगा। इसके साथ ही वैश्विक परिस्थितियां भी इसमें भूमिका निभाएंगी।

सैमको सिक्योरिटीज के रिसर्च हेड मार्केट प्रासपेटिक अपूर्व सेठ कहते हैं गवर्नर संजय महल्होत्रा ने साहिसक कदम उठाते हुए गवर्नर ने आक्रामक रुख अपनाया और रेपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती की। इसके साथ ही सीआरआर में भी 100 आधार अंकों की कटौती की गई है। इससे बैंकिंग प्रणाली में लगभग 2.5 ट्रिलियन नकदी आएगी। सीआरआर में घोषित कटौती 25-25 आधार अंकों के साथ चार चरणों में लागू की जाएगी। यह 6 सितंबर, 4 अक्तूबर, 1 नवंबर और 29 नवंबर से शुरू होने वाले सप्ताह से शुरू होगी।

उन्होंने बताया कि चीन ने सितंबर 2024 में अपनी सीआरआर में 50 आधार अंकों की कटौती की जिससे उसके बैंकिंग सिस्टम में 142 बिलियन डॉलर की राशि डाली गई। इसकी तुलना में भारत के इस फैसले से जिसमें छह महीनों में 30 बिलियन डॉलर जारी होने की उम्मीद है। यह घरेलू खपत के लिए महत्वपूर्ण प्रोत्साहन देगा।

उनके अनुसार कॉरपोरेट, उपभोक्ताओं और निवेशकों पर निर्भर है कि वे इस मौके का लाभ कैसे उठाएंगे। अब तक कॉरपोरेट पूंजीगत व्यय धीमा रहा है, इसका मुख्य कारण कंपनियों की बैलेंस शीट में नरमी और वैश्विक बाधाएं रही हैं। अब जब आरबीआई ने लिक्विडिटी के मोर्चे पर चीजें बेहतर बना दी है तो अब निवेश बढ़ाने और विकास के अगले चरण के लिए जरूरी क्षमता का निर्माण करने की जिम्मेदारी निजी उद्यमों पर है।

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